शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

अहिल्या के प्रश्न








क्या मूल्य ?
क्या नैतिकता ?
क्या प्रेम ?
क्या न्याय ?
कौन हो दण्ड का भागी?
कहो महिर्षि गौतम
इन्द्र?
चन्द्र?
मै ?
या हर न्यायाधीश ?

हर पत्थर मुक्त हो जाता है
अपनी जड़ता से
लेकिन कितने युगों के बाद?
जाने किसके स्पर्श से?

जीवन के वर्तुल में
एक श्राप को काटता
एक दूसरा श्राप.
ये कैसा न्याय है ?

क्या तुम्हारा अभिमान नही समझता इतना भी
कि ठोकर से पत्थर वापस मनुष्य नही बनता
मनुष्यता पत्थर हो जाती है
और इतिहास कलंकित.

हे क्रोधोन्मत्त व्रतानुरागी
मै अहिल्या नही
इतिहास हूँ.
मेरे प्रश्नों को भस्म नही कर सकते तुम्हारे श्राप
ना वो अनैतिक हो जाते है तुम्हारे कहने पर.

अवतार मुक्त करेगा
मुझको
या तुमको?

तुम्हारा श्राप मुक्त नही न्यूटन के तीसरे नीयम से
जाओ
सिसीफस से पूछो
क्या एक दिन हर श्राप की मियाद पूरी हो जाती है ?