सोमवार, 8 दिसंबर 2014

अपने समय के लिए/अपने लिए - 2










कोई अंतराल नही
कोई पर्दा नही गिरता
बदलते, बढ़ते
जाते है पात्र
वो मुझे शाबाशी देते है
मै उनके लिए तालियाँ बजाता हूँ
इस तरह हम एक दूसरे का उपहास करते है.


जिस समय में
कोई निर्दोष नही है
हमारे पहचान-पत्र राशन कार्ड बन गए है
और नाम इतिहास में बिसरा दी गयी तारीख
एक आम दुर्घटना की तरह हुआ ये जानना
कि मेरी असफलता ही मेरी इकलौती उपलब्धि है.
कि इसके वज़न की गहराई
मेरे ह्रदय के अँधेरे तक है.
कि इस असफलता के साँचे से होकर गुज़रता है
मेरा बोलना
सुनना
चुप रहना
और प्रेम करना भी.


मैंने जो किया
वो हमेशा अलग रहा उससे
जो करना चाहा था
ये एक हत्यारे की आखिरी दलील है
जिसे क़यामत के दिन
अनसुना छोड़ दिया जाएगा.