सड़क शहरों को जोड़ती नही
शहर को शहर बनाती है.
वो निर्धारित करती है
हमारे चलने का ढंग,
हमारी गति,
और हमारा गंतव्य भी.
गलियों में चलने वाला मनुष्य ज्यादा स्वायत्त होता है.
गलियों में चलने वाला मनुष्य ज्यादा स्वायत्त होता है.
पहाड़ो, नदियों और अब तो
समंदर तक भी पहुँच गयी है सड़क.
मेरा गाँव भी
बस शहर से दूर है
सड़क से नही
जिसको पोषित करती है अनगिन गलियाँ .
मै दस बरस बाद भी गलियों से होता हुआ पहुँच सकता हूँ अपने गाँव वाले घर.
जिसको पोषित करती है अनगिन गलियाँ .
मै दस बरस बाद भी गलियों से होता हुआ पहुँच सकता हूँ अपने गाँव वाले घर.
मुझे नही याद रहते सड़को के नाम,
घरो के पते,
और रास्ते भी.
पिता इसे स्मृति-दोष कहते है
और तुम मेरी लापरवाही.
मुझे गहरे मे ये विस्मृति कोई आदिम जिद-सी लगती है.
हांलाकि मै गलत भी हो सकता हूँ.
असल में,
जिस तरह आप एक ही नदी में दो बार नही उतर सकते,
आप एक ही सड़क पर दो बार नही चल सकते.
और मुझे याद नही उस रोज़ सड़क पर चलते हुए
मैंने इस विषय में क्या सोचा था.
हांलाकि मै गलत भी हो सकता हूँ.
असल में,
जिस तरह आप एक ही नदी में दो बार नही उतर सकते,
आप एक ही सड़क पर दो बार नही चल सकते.
और मुझे याद नही उस रोज़ सड़क पर चलते हुए
मैंने इस विषय में क्या सोचा था.