सोमवार, 8 दिसंबर 2014

अपने समय के लिए/अपने लिए - 2










कोई अंतराल नही
कोई पर्दा नही गिरता
बदलते, बढ़ते
जाते है पात्र
वो मुझे शाबाशी देते है
मै उनके लिए तालियाँ बजाता हूँ
इस तरह हम एक दूसरे का उपहास करते है.


जिस समय में
कोई निर्दोष नही है
हमारे पहचान-पत्र राशन कार्ड बन गए है
और नाम इतिहास में बिसरा दी गयी तारीख
एक आम दुर्घटना की तरह हुआ ये जानना
कि मेरी असफलता ही मेरी इकलौती उपलब्धि है.
कि इसके वज़न की गहराई
मेरे ह्रदय के अँधेरे तक है.
कि इस असफलता के साँचे से होकर गुज़रता है
मेरा बोलना
सुनना
चुप रहना
और प्रेम करना भी.


मैंने जो किया
वो हमेशा अलग रहा उससे
जो करना चाहा था
ये एक हत्यारे की आखिरी दलील है
जिसे क़यामत के दिन
अनसुना छोड़ दिया जाएगा.

रविवार, 30 नवंबर 2014

राम नाम सत्य है!

एक कविता के बीचो-बीच
गुज़र जाती है एक अर्थी 
जीवन के बीचो-बीच 
ह्रदय को चीर कर जाती मृत्यु 

शोर के बीच 
अजाना-अनजाना रह जाता 
एक प्रश्न 

कि क्या सत्य है ? 
कोई भी नाम ?
कोई नाम.
राम.

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

अहिल्या के प्रश्न








क्या मूल्य ?
क्या नैतिकता ?
क्या प्रेम ?
क्या न्याय ?
कौन हो दण्ड का भागी?
कहो महिर्षि गौतम
इन्द्र?
चन्द्र?
मै ?
या हर न्यायाधीश ?

हर पत्थर मुक्त हो जाता है
अपनी जड़ता से
लेकिन कितने युगों के बाद?
जाने किसके स्पर्श से?

जीवन के वर्तुल में
एक श्राप को काटता
एक दूसरा श्राप.
ये कैसा न्याय है ?

क्या तुम्हारा अभिमान नही समझता इतना भी
कि ठोकर से पत्थर वापस मनुष्य नही बनता
मनुष्यता पत्थर हो जाती है
और इतिहास कलंकित.

हे क्रोधोन्मत्त व्रतानुरागी
मै अहिल्या नही
इतिहास हूँ.
मेरे प्रश्नों को भस्म नही कर सकते तुम्हारे श्राप
ना वो अनैतिक हो जाते है तुम्हारे कहने पर.

अवतार मुक्त करेगा
मुझको
या तुमको?

तुम्हारा श्राप मुक्त नही न्यूटन के तीसरे नीयम से
जाओ
सिसीफस से पूछो
क्या एक दिन हर श्राप की मियाद पूरी हो जाती है ?

रविवार, 21 सितंबर 2014

ह्रदय या मुट्ठी भर अँधेरा ?













जितनी कसी होगी मुट्ठी
उतना अधिक रिसता जाएगा 
प्रेम,
स्वप्न,
जीवन.

बंद मुट्ठी में सहेजी जा सकती है 
केवल रूढ़ियाँ, 
भ्रांतियाँ, 
और अँधेरा. 

मुट्ठियों का खुलना ज़रूरी है.

खुली हथेलियों पर ही पढ़ी जा सकती हैं 
जीवन की आढ़ी-तिरछी रेखाएँ, 
मुट्ठी खोलकर की थामा जा सकता है हाथ, 
किया जा सकता है प्रेम,
लिखी जा सकती है चिट्ठियाँ,
पलटा जा सकता है इतिहास का
कोई अपठनीय पृष्ठ.

चलो 
खोल दे सदियों से तनी-कसी मुट्ठियाँ 
जिनसे झड़ती रेत के साथ 
गिरकर टूट जाए मिट्टी के भ्रम भी,
मुक्ति पा जाए रूढियों के प्रेत, 
तिरोहित हो जाए मुट्ठी भर अँधेरा.


शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

सुनो




शब्दों में लिखा सबकुछ कई दरम्यान एक पर्दा होता है... या कई-कई परदे. एक दुसरे को ढापे-ढके हुए. पहेली के हिस्सों की मानिंद. कहानियों के उलझे हुए हिस्सों के जैसे. और तब लिखा हुआ अर्थ और उसकी  समझ की सीमा के बाहर परवाज़ खोजता है..

तुम्हे बुलाता है... लेकिन भीड़ के साथ नही.

अरे सुनो, भीड़ चाहिए होती  तो यूँ शहर में अकेला क्यों रहता.
कहो.

मेरा सारा लिखा एक आमंत्रण है. तुम्हे. इस पहेली को सुलझाने का नही... ये कोई परीक्षा नही है... इस पहेली के भीतर आने के लिए. केवल तुम्हे.

मै नही चाहता लिखा हुआ समझ लिया जाए. मेरा लिखा.

लिखते हुए मै सीक्रेट एजेंट की तरह हो जाता हूँ. चाहता हूँ कि असल अर्थ बस तुम तक पहुंचे. बाकी सब उलझ जाए. धोखा खा जाए. ये अब एक खेल जैसा हो गया है. ये सुख भी है. और यंत्रणा भी. बोथ सैडिस्ट एंड  मेसोचिस्ट.


गुरुवार, 18 सितंबर 2014

स्मृति-पुराण







जीवन-मृत्यु
विष-अमृत
माया-मोक्ष
देह-आत्मा
प्रेम-स्मृतियाँ

निर्णय ने रोक दिया हैं कोई भी मंथन
देवता और असुर खामोश हैं
और लज्जित भी

समंदर के शोर की गूँज
आकाश के मौन से टकराकर
बदलती हैं हर रोज़ नमक में

थोड़ा सा नमक खानें में काम आता हैं
और बहुत सारा दफनाने में.


बुधवार, 17 सितंबर 2014

अपने समय के लिए/अपने लिए - 1











जब
एक छोटे से वृत्त में की जा रहीं हो
सबसे लम्बी यात्रा,
प्रेम को घिस-घिस कर किया जा रहा हो
पत्थर के जितना चिकना,
कल्पना से गढ़े जा रहें हो
अपने-अपने ज़रूरी झूठ,
और बहुत सारे शोर में दबायी जा रही हो
शून्य के मौन की टीस;

तब

कठिन फैसलों में प्रयोग करना  
सबसे कम शब्द,
सबसे गहरे प्रेम पर बहाना
सबसे कम आँसु,
सबसे कीमती स्मृतियों को करना
सबसे कम याद,
सबसे गहन चुम्बन में लेना
सबसे कम साँसे.

शब्दों का बैर होता हैं

संबंधो की गरिमा से,
आँसुओ से भी धुल जाता है
स्मृतियों का संताप,
सबसे कीमती स्मृतियों को याद नही किया जाता है
जिया जाता है 
जीवन की सीमा तक,
और, प्रेम में नही होना चाहिए व्यवधान 
साँसों का भी.

इसीलिए  
रची जाती है  
नितांत निजी कवितायें

जीया जाता है 
नितांत निजी जीवन.

लेकिन जानता हूँ 

इस सहेजी हुई निजता के बावजूद  
नमक मिले शब्दों, भीनी स्मृतियों 
और मीठी साँसों
की महक आती रहेगी
सदी के दस्तावेज़ों में लिखे
सही और गलत,
सच और झूठ, 
पाप और पुण्य,
-को खारिज करते
-पर प्रश्न उठाते
-से तठस्थ रहते
जीवन के शब्दकोष से

और सनद रहेगा कि - 
यथार्थ के समक्ष हमेशा जीवित रहते है स्वप्न 
भविष्य के एक सिरे को थामे रखती हैं स्मृतियाँ 
और 
समाजशास्त्र से कंधे मिलकर खड़ी हो सकती है 
एक छोटी सी कविता.

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

सुविधा, सच, समझ - तीन छोटी कवितायें












मेरी स्मृति
गहरे में मेरा चयन हैं.

हर चयन
एक सुविधा हैं.

हर सुविधा
सुविधाजनक नही होती.

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शोर और शब्द के मेल से बनी इस भाषा में
निःशब्द होना आया मेरे हिस्से

प्रश्न और उत्तर की शैली में बात करते करते
भूल गए हम
कि हर प्रश्न का दायरा
तय कर देता हैं उत्तर की सीमा

सीमा के भीतर रहने के लिए
एक सच टूटकर
कई टुकड़े झूठ बनता हैं.

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मेरी खिड़की से दिखने वाले नक्षत्र
तुम्हारे तारो से अलग है
यह हमारे आकाश का नही
खिड़कियो का भेद हैं.

अभी हमारा ये समझना बाकी हैं.

सोमवार, 17 मार्च 2014

महानदी और प्रेम











लड़का करेगा लम्बी यात्राऐं
पार करता शहर,
नदियाँ, जंगल, पर्वत
मन के एक हिस्से से
ह्रदय के केंद्र की ओर.

लड़का लिखेगा छोटी कविताएँ
जिससे बाहर रहेंगे दुनिया भर के यथार्थ
और सहेजी जाएगी केवल
सत्य-असत्य, प्रेम-अप्रेम,
और 
स्वप्न की खोज.

एक महासमुन्द्र के किनारे
लड़का करेगा महानदी से प्रेम
स्मृति और स्वप्न के मुहाने पर
रचेगा नए यथार्थ

कुछ और खारा हो जाएगा समंदर
थोड़ी और मीठी हो जाएगी नदी.

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

रिश्तो का गणित




 








दो में से एक घटाने पर क्या बचता हैं ?
यह गणित का सबसे कठिन सवाल हैं.

घटाए हुए एक
और बच कर आये एक
का पीछा करती हैं दो की छाया

भविष्य पर इतिहास की छाया
भौतिकी के नियमो से परे
मिथकों के सत्य
और डर को समेटे
सबसे भयानक ग्रहण हैं

एक कहानी में पढ़ा था मैंने
अपनी परछाई से डरने वाले
आदमी के बारे में
(जिसे पागल कहते थे सब !!)

वो कहानी अब अक्सर मुझे याद आती हैं.

पेस्सोया सही कहते हो तुम
हम सब कहानी सुनाती हुयी कहानियां ही तो हैं.