सोमवार, 17 मार्च 2014

महानदी और प्रेम











लड़का करेगा लम्बी यात्राऐं
पार करता शहर,
नदियाँ, जंगल, पर्वत
मन के एक हिस्से से
ह्रदय के केंद्र की ओर.

लड़का लिखेगा छोटी कविताएँ
जिससे बाहर रहेंगे दुनिया भर के यथार्थ
और सहेजी जाएगी केवल
सत्य-असत्य, प्रेम-अप्रेम,
और 
स्वप्न की खोज.

एक महासमुन्द्र के किनारे
लड़का करेगा महानदी से प्रेम
स्मृति और स्वप्न के मुहाने पर
रचेगा नए यथार्थ

कुछ और खारा हो जाएगा समंदर
थोड़ी और मीठी हो जाएगी नदी.

3 टिप्‍पणियां:

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  2. nadi kitni hi meethi kyu na ho jaye .... use aakhir milna to us samander mein hi hai ..... khare samander mein....

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  3. कुछ कहना है आपकी इस कविता पर नील. बाकी कविताओं पर भी कुछ कहना चाहा है, लेकिन कारण/बहाने रहे हैं कुछ ऐसे की कुछ कहते न बना. आपकी तरह कवि तो मैं हूँ नहीं। कविता की समझ है थोड़ी सी और आपकी कविताओं में जीवन की इक व्यापक खोज और उसकी एक अनंत चाह नज़र आती है. मैंने कुछ दिनों पहले नदी देखी थी, इसी शहर में जहाँ आप और मैं रहते हैं. यहाँ नदी का एक रंग है, जो जीवन के रंग जैसा ही हैं. स्याह। सपनों में आने लगी हैं नदियां। गंगा छोटे में देखी थी, जब नदी किनारे वाले शहर में रहे थे कुछ दिन. जाने क्यूँ, नदी की तस्वीर के साथ अक्सर पुल की तस्वीर भी जेहन में आया करती है. प्रेम के विषय में कुछ कहना बेमतलब लगता है. ये जीने की बात है. जीने जीने की. मेरे जीने में प्रेम ही यथार्थ है. इकलौता यथार्थ। और प्रेम वो भी है. वो जो भी कुछ यथार्थ का विलोम है, विपरीत है. काश की प्रेम हमसब के जीवन का यथार्थ, स्वप्न, प्रेरणा रहे.
    लड़का छोटी छोटी कविताएं लिखेगा, और वो कविताएं बहुतों के लिए सुंदरता का पर्याय होंगी। लिखते रहे आप. :)

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