गुरुवार, 11 अक्टूबर 2018

सवाल - जवाब



जब जवाब पहचान हो
और सवाल सुनना नागरिकता

तब पहचानना कि किसके सवाल
यज्ञ के अश्व है 
जो रौंद देना चाहते है दसो दिशाएं

तुम समझना कि अंधी-सत्ता की महत्वाकांक्षा
दुनिया को समझना नही
दुनिया को सुलझाना है

जैसे जीवन को सुलझा देती है विस्मृति
मिथकों को इतिहास
प्रेम को सम्बन्ध
और कविता को तुम.

मुझे विश्वास है समझने में

जैसे बाढ़ को समझती है नदी
ज्वार को समंदर
स्मृति को मिथक
और कवि को कविता 

सुलझा कर
तान दी जाती है प्रत्यंचाएं
समेट ली जाती है पतंगें
और खारिज कर दी जाती है सारी पहेलियाँ 

केवल इसीलिए
मेरे मन की दिशा वर्जित है 
तुम्हारे प्रश्नों के लिए 
तुम्हारे अश्वो के लिए 
तुम्हारे इश्वर के लिए.

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

मेरे सारे गुल्लक भरने से पहले ही फूट गए.



हमने जितना बोला
उतना ही लगभग अनकहा रहा
जितना लिखा
उससे ज्यादा मिटा दिया.

स्मृति में अंकित हर स्वप्न को
हमने देखा अचरज भरे अपराधबोध के साथ

स्मृति उतनी रहनी थी
जितनी ज़रूरी थी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए
स्वप्न उतने बचने थे
जितने से चोटिल न हो यथार्थ का अहंकार

स्वप्न और स्मृति को मिलना था
मेरे अतीत और तुम्हारे भविष्य में

अतीत का विस्तार उतना था
जहां से शुरू हो तुम्हारा होना
भविष्य उतना ही बनना था
जितना बना सके अपनी मनमानियों के बीच

मनमानियों ने जीवन को गुल्लक बना दिया
जिसमे खनकती है थोड़ी सहूलियतें और बाकी का अपराधबोध

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स्मृति, स्वप्न, अपराधबोध, सफलता, प्रेम, मनमानियाँ और सहूलियते हमारे समय में बिखरे सबसे आम शब्द थे. इन्ही शब्दों से हम खाते रहे ठोकरे, पैने करते रहे अपने अनुभव, लेते रहे सहारे, और लिखते रहे जुनूं में यूं कुछ भी.  

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

सलामी दे (सैल्युट!)


मर्सिन बोंदारोविक्ज़ की कृति 














न पुरातन गल्पो पर इतराते
और न ही बंद मुट्ठी लहराते
किसी के भी झंडे का रंग
खून के रंग से नही मिलता

हाँ, खून के दाग हर झंडे पर हैं.

तुम जिनके हाथ में झंडा देखते हो
मैं उनके हाथ में डंडा देखता हूँ
झंडा फहराना देशभक्त होना है
डंडा देख लेना एक अपशकुन

सब छोड़ो,
झंडा डण्डे के ऊपर है
झंडे को सलाम करो
(और देखो!)
सलामी पाते झंडे का रंग
थोड़ा और सुर्ख हो जाता है.