सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

सलामी दे (सैल्युट!)


मर्सिन बोंदारोविक्ज़ की कृति 














न पुरातन गल्पो पर इतराते
और न ही बंद मुट्ठी लहराते
किसी के भी झंडे का रंग
खून के रंग से नही मिलता

हाँ, खून के दाग हर झंडे पर हैं.

तुम जिनके हाथ में झंडा देखते हो
मैं उनके हाथ में डंडा देखता हूँ
झंडा फहराना देशभक्त होना है
डंडा देख लेना एक अपशकुन

सब छोड़ो,
झंडा डण्डे के ऊपर है
झंडे को सलाम करो
(और देखो!)
सलामी पाते झंडे का रंग
थोड़ा और सुर्ख हो जाता है.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें