मंगलवार, 5 नवंबर 2019

सूचनाओं के दौर में इतिहास पढ़ते हुए












सूचनाएं हर एक विचार पर
चढ़ रही है नागफनी की तरह
आंख बंद करने और खोलने के फर्क को
कम करती जा रही है सूचनाएं

इतिहास को पढ़ना  
जिरहबख्तरो की बनावट को नज़दीक से देखना है

इतिहास
मनोविज्ञान नही है
वो साहित्य भी नही
इतिहास तेज़ भाग रहे सिकंदर के घोड़े की लगाम है।

सूचनाओं का मोह                 
सिकंदरों को उन्माद देता है
इतिहास घोड़े को रोक कर पूछता है उससे
मुँह में पड़ी लगाम के लोहे का स्वाद*


*धूमिल की अंतिम कविता की आखिरी पंक्ति थी - लोहे का स्वाद//लोहार से मत पूछो//उस घोड़े से पूछो//जिसके मुँह में लगाम है.




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें