मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

जेब में हाथ डालकर चलने वाले कवि की कविता

मै तुम्हे याद करते हुए ही जाता हूँ
और कहीं नही पहुंचता
मै डरते-डरते जाता हूँ
और कहीं नही पहुंचता

डर छूने से फैलता है
मै इसे फैलने से रोकने की असफल कोशिश करते हुए ही जाऊंगा
कही भी न पहुँचने के लिए.

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मै काट दी गयी कविता में भी
अक्सर वर्तनियो की अशुद्धियाँ ठीक करता पाया जाता हूँ.

ये इतिहास को छूने से लगा रोग है
जो मेरे जीवन से होता हुआ 
कविताओं में भी फैल गया है.

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मेरे पास छूने की केवल स्मृति रही
छूने का यथार्थ मैंने स्मृति से पाया
छूने की कल्पना सदा से स्मृति में ही थी.

छूने के उस कम्पन में ही जाना मैंने प्रेम
छूने के स्वाद में ही चखा मैंने विलगाव.

मै कहना चाहता था कि छूने से आ जाता है विश्वास 
कि छूने से बंधता है ढाढस
कि छूने से बढ़ता है प्रेम 
मै लिखता जाता हूँ कि मुझे छूने से अब लगता है भय
कि छूने से टूट जाते है स्वप्न
कि छूने से फैलती है महामारियाँ


शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

इतिहास. होना.

डॉ भाऊ दाजी संग्रहालय में एक कृति 














मै इतिहास का छात्र रहा जीवन भर 
जो तने को छूकर जड़ो को जानने की कला का नाम है.

मैने स्मृति में जब भी - कुछ भी टटोला 
केवल जड़े हाथ आई 
सारे तने खो गए.

मेरे विषय में तिथि तथ्य है
और तथ्य इष्ट.
मेरे विषय में ईशनिंदा पाप है
और ईशनिन्दक ईश्वर.
मेरे विषय में मै संधिग्ध हूँ
और संदेह अनुपस्थित.

मै संदेह के रास्ते जाता हूँ 
तो स्मृति खो जाती है 
और इतिहास का कोई रास्ता
तुम तक नही जाता. 


मैंने खुद चुने है सभी श्राप   
ये जानने के बाद 
कि प्रेम में दूसरी कोई मुक्ति नही होती 

एक असफल कवि के बजाय 
मै एक असफल इतिहासकार होना चाहता हूँ.
सच में. 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

१. २. ३.

१.

सूरज पूरब से उगा
इसलिए परछाई पश्चिम में दिखी
ये विज्ञान की नही
इतिहास की सीख है.

बेहद नाकारा हैं हम
अगर इतिहास खुद को दोहराता है
बेहद नाकारा है इश्वर
अगर विज्ञान का सच अंतिम है

मुझे प्रतियोगिता से चिढ़ है
और इसीलिए नाकारे इश्वर से भी.

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२.

तुम्हारा अगला पैर
पिछले पैर को पीछे छोड़ के रहेगा एक दिन

ये बात तुमने किताब में पढ़ी
और सच मान ली

सदियों बाद कहा गया
कुसूर तुम्हारा नही
पैरो का है

ये नयी किताबो में लिखा था

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३.

क्या सूरज पूरब से उगता है ?
बुद्ध मौन रहे.

क्या किताबे मिथ्या है ?
बुद्ध मौन रहे.

बुद्ध कुछ बोले क्यों नही ?
इतिहास ने ग्रन्थ टटोल डाले.
बुद्ध हँसे क्यों नही ?
इतिहास ने ये प्रश्न अनसुना कर दिया.
यही इतिहास की सीमा है
और कविता की संभावना.