शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

हिबाकु-जुमोकु


हिरोशिमा में छह अगस्त को आसमान से बरसी थी आग
लील गयी थी वो सबकुछ
झुलस गया था सारा जीवन
और भाप हो गए थे सपने भी

उसके धुंए के छटने से पहले ही  वहां वापस हरे हो गए थे हिबाकु-जुमोकु पेड़

जब था कल्पना के भी धुंआ हो जाने का डर
तब पृथ्वी के गर्भ से निकला ये सबसे मानवीय आश्वासन था

तबसे से अब तक
चुका नही है ये आश्वासन

फिलिस्तीन की दीवारों पर भी उग आते हैं
और कश्मीर के बीचोंबीच गुज़रती बाड़बंदी पर चढ़ने लगते हैं वो
बामियान में बारूद की गंध उसके पत्तो ने ही सोखी
और पोखरन के उसको देख कर ही असल मे मुस्कुराये थे बुद्ध

इतिहास के पन्नो से नज़र उठा कर
मैं देखता हूँ किसी स्त्री के कान पर लगे झुमके जब भी
मेरी आँखों के सामने आ जाते है
 जापान के वही हिबाकु-जुमोकु पेड़

जोहानेस वेर्मीर की मशहूर कृति 'Girl with a pearl earring'













सोमवार, 5 नवंबर 2018

यथार्थ और संभावना

मिखाल रपाक की कृति 













हम जो जी रहे है 
और जो जी सकते है 
उसमे क्या जिया हुआ ही यथार्थ है,
और बाकी सब संभावना?

मसलन मेरा घर से निकलना यथार्थ है 
लेकिन बीच रास्ते में होना संभावना
मेरा लिखा यथार्थ है 
तुम्हारा इसे पढ़ना - संभावना  

या धू-धू कर जो जलता है चिता पर 
वही होता है ठोस यथार्थ 
और बीच-बीच में फूटती चिंगारियां 
शोक मनाती संभावनाएं 

कभी-कभी संदिग्ध होता यथार्थ 
कभी कितनी विश्वसनीय लगती संभावनाएं 

संदेह-विश्वास, प्रेम-संत्रास के बीच 
ऊंट किस करवट बैठेगा - 
ये हमारी भाषा का मुहावरा है. 

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संभावना और यथार्थ मानो सिक्के के दो पहलू हैं 
और चित्त या पट का इंतज़ार
बुरे अफसानानिगारो का शगल

मुझे नही पता ये विज्ञान है या दर्शन 
या कि कपोल-कल्पित गल्प
लेकिन उम्मीदों का गुरुत्वाकर्षण बल न हो दुनिया मे अगर
तो रह सकता है अनंत काल तक हवा में 
एक घूमता हुआ सिक्का


गुरुवार, 11 अक्टूबर 2018

सवाल - जवाब



जब जवाब पहचान हो
और सवाल सुनना नागरिकता

तब पहचानना कि किसके सवाल
यज्ञ के अश्व है 
जो रौंद देना चाहते है दसो दिशाएं

तुम समझना कि अंधी-सत्ता की महत्वाकांक्षा
दुनिया को समझना नही
दुनिया को सुलझाना है

जैसे जीवन को सुलझा देती है विस्मृति
मिथकों को इतिहास
प्रेम को सम्बन्ध
और कविता को तुम.

मुझे विश्वास है समझने में

जैसे बाढ़ को समझती है नदी
ज्वार को समंदर
स्मृति को मिथक
और कवि को कविता 

सुलझा कर
तान दी जाती है प्रत्यंचाएं
समेट ली जाती है पतंगें
और खारिज कर दी जाती है सारी पहेलियाँ 

केवल इसीलिए
मेरे मन की दिशा वर्जित है 
तुम्हारे प्रश्नों के लिए 
तुम्हारे अश्वो के लिए 
तुम्हारे इश्वर के लिए.

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

मेरे सारे गुल्लक भरने से पहले ही फूट गए.



हमने जितना बोला
उतना ही लगभग अनकहा रहा
जितना लिखा
उससे ज्यादा मिटा दिया.

स्मृति में अंकित हर स्वप्न को
हमने देखा अचरज भरे अपराधबोध के साथ

स्मृति उतनी रहनी थी
जितनी ज़रूरी थी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए
स्वप्न उतने बचने थे
जितने से चोटिल न हो यथार्थ का अहंकार

स्वप्न और स्मृति को मिलना था
मेरे अतीत और तुम्हारे भविष्य में

अतीत का विस्तार उतना था
जहां से शुरू हो तुम्हारा होना
भविष्य उतना ही बनना था
जितना बना सके अपनी मनमानियों के बीच

मनमानियों ने जीवन को गुल्लक बना दिया
जिसमे खनकती है थोड़ी सहूलियतें और बाकी का अपराधबोध

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स्मृति, स्वप्न, अपराधबोध, सफलता, प्रेम, मनमानियाँ और सहूलियते हमारे समय में बिखरे सबसे आम शब्द थे. इन्ही शब्दों से हम खाते रहे ठोकरे, पैने करते रहे अपने अनुभव, लेते रहे सहारे, और लिखते रहे जुनूं में यूं कुछ भी.  

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

सलामी दे (सैल्युट!)


मर्सिन बोंदारोविक्ज़ की कृति 














न पुरातन गल्पो पर इतराते
और न ही बंद मुट्ठी लहराते
किसी के भी झंडे का रंग
खून के रंग से नही मिलता

हाँ, खून के दाग हर झंडे पर हैं.

तुम जिनके हाथ में झंडा देखते हो
मैं उनके हाथ में डंडा देखता हूँ
झंडा फहराना देशभक्त होना है
डंडा देख लेना एक अपशकुन

सब छोड़ो,
झंडा डण्डे के ऊपर है
झंडे को सलाम करो
(और देखो!)
सलामी पाते झंडे का रंग
थोड़ा और सुर्ख हो जाता है.