मंगलवार, 5 मार्च 2019

दीवारें - 1

(c) ज़ेफ़ सफी, flickr












दीवारें कितनी मज़बूत और ताकतवर दिखती है,
दरकने से ऐन पहले तक.
दरकना कितना अदृश्य होता है,
अदृश्य कितना ताकतवर. 

अदृश्य में निवास करते सारे देवता
पुरखे
आत्मा
और प्रेत.
अदृश्य में निवास करता जीवन का ब्लैकहोल.

बस यही से शुरू होती सारी गड्डमड्ड

मैं कुछ बुरा भला कहता अपने पुरखों को
और बींध जाती अपनी ही आत्मा.
मैं सहेजना चाहता जीवन को स्मृति में 
और निगल जाता उसे एक ब्लैकहोल.
मैं दुख में याद करता देवताओं को
उससे और अधिक पोषित हो जाते मेरे प्रेत.
मैं दृश्य में जब भी रखने लगता अपने हथियार
अदृश्य में शुरू हो जाता एक अंतर्द्वंद.

इसमे द्वैत-अद्वैत की बहस नही
आदम को मिला श्राप है.

दृश्य और अदृश्य का द्वंद पूर्वर्निश्चित  है.
धर्म के छात्र हो
तो इसे नियति कह सकते हो.

इतिहास के छात्र हो तो
खोजो कि ये धर्म क्यो अफीम है?

नियाति से लड़ना साहस है,
श्राप से लड़ना तप.

इस सबके के बीच
जिस दीवार पर लिखी है जीवन के मूल्यों की बहस
मैं उसी दीवार की ओट में खड़ा हूँ
आधा आसरा लेकर
आधा सहारा देकर.

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