तिश्नगी
दिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी, इक समन्दर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे
गुरुवार, 26 दिसंबर 2013
शहर - १
शहर को लड़ना पड़ता हैं
जंगल से
बसने से पहले |
शहर बस जाता हैं
एक दिन |
आती हैं रात को अब भी
वहाँ आदिम आवाज़े
जंगल से...
भीतर से...
बाहर से...
जंगल कहीं नही जाता |
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