बुधवार, 4 दिसंबर 2019

सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते हुए





आसानी और तेज़ी से उतरा जा सकता है सीढ़ियों से
देर हमेशा सीढ़ियाँ चढ़ने में लगी

चढ़ते हुए
थकावट की बाट जोहती एक अजीब सी तेज़ी में
मैं अक्सर भूल जाता कि पहुंचना कहां था

तीसरी मंजिल पहुंच कर
चौथी पहुंच जाने का भ्रम होता
कभी-कभी तो
डोरबेल से आती
अपनी धड़कन जैसी आवाज़

ऊपर जाते हुए
अक्सर कुछ भ्रम सच निकल जाते
और मैं मानने लगता
सच को भी
एक सर्वमान्य भ्रम

सच पूछो तो ऐसा मान लेना
खुद में एक अलौकिक अनुभव लगता
जब तक वापस नीचे आते हुए
कुछ बौनी लगने लगती
अपनी ही परछाईं। 
__________________________________________ 

सीढ़ी उतरते हुए भी जिया जा रहा होता है वही जीवन
जो जिया जा रहा होता है
कुछ भी और करते वक़्त

कुछ भी करते वक़्त
हाथो में होना चाहिए विश्वास
पैरो में संयम
और सीने में किसी अनजान ठोकर से जूझ लेने का जीवट

फिर भी 
जो होना चाहिए 
वो होता है कितना कम
जीवन मे बने रहते सोपानक्रम

तय रहती चीज़ों की एक मुख्तसर जगह
कि बना रहे जीवन मे नियंत्रण का भ्रम

मै देता रहा अपने हर भ्रम को
सच होने का आभास
मेरे सारे भ्रम
मेरे सच के अहसानमंद रहे

एक रोज़
उन्हें इसी एहसान के बोझ तले
टूट जाना था ।
_________________________________________

ऊपर-नीचे का द्वैत
एक ही परिभाषा के दो सिरे है
और सतह इतनी चिकनी
कि तर्क फ़िसल ही जाते हैं

हम उतरे
चढ़े
गिर जाए
उठ खड़े हों
या गिरते ही रहें

ये एक थका देने वाला निरर्थक उपक्रम है

मैं एक गीत गुनगुनाता हूँ
एक कविता सुनाता हूँ
एक पंछी बन जाता हूँ

तभी लौटती है पुरानी दुविधा
कि स्वप्न से दुःस्वप्न में लौटकर
चुपचाप ले सकता हूँ 
इन सीढ़ियों से विदा!

क्या सच में इन सीढ़ियों से होकर
मुझे घर ही जाना है?

रविवार, 10 नवंबर 2019

मैं टुकड़े-टुकड़े समझ जोड़ रहा हूँ - 1











हिम्मत टुकड़े टुकड़े जोड़ कर बनती है
टूटतीं भी हिस्सो में है

मैं टूटता हूँ, भूलता हूँ
बनता हूँ, याद करता हूँ

एक पंक्ति लिखकर मै हिसाब दोहराना चाहता हूँ
एक पंक्ति लिखकर मै सब सुलझाना चाहता हूँ

एक लम्बे समय से अपनी हर कविता में
मै लिख रहा हूँ एक ही पंक्ति बार-बार

मेरा हर शब्द इतना छोटा है
कि काग़ज़ पर कविता नही
एक लकीर नज़र आती है

मैं कविता लिखता 
और लकीरो से ढकने लगता जीवन का यथार्थ 
कभी मिटाता कोई लकीर
तो जीवन से विदा ले लेती कोई पुरानी कविता

गले में अटकते
दुःस्वप्नों में भटकते
बेमतलब -
घिस चुके शब्द
एक-एक कर छोड़ रहा हूँ

मैं टुकड़े-टुकड़े समझ जोड़ रहा हूँ











मंगलवार, 5 नवंबर 2019

सूचनाओं के दौर में इतिहास पढ़ते हुए












सूचनाएं हर एक विचार पर
चढ़ रही है नागफनी की तरह
आंख बंद करने और खोलने के फर्क को
कम करती जा रही है सूचनाएं

इतिहास को पढ़ना  
जिरहबख्तरो की बनावट को नज़दीक से देखना है

इतिहास
मनोविज्ञान नही है
वो साहित्य भी नही
इतिहास तेज़ भाग रहे सिकंदर के घोड़े की लगाम है।

सूचनाओं का मोह                 
सिकंदरों को उन्माद देता है
इतिहास घोड़े को रोक कर पूछता है उससे
मुँह में पड़ी लगाम के लोहे का स्वाद*


*धूमिल की अंतिम कविता की आखिरी पंक्ति थी - लोहे का स्वाद//लोहार से मत पूछो//उस घोड़े से पूछो//जिसके मुँह में लगाम है.




गुरुवार, 15 अगस्त 2019

आज़ादी


हर तरह की आज़ादी से मैं खुश हूं
वो चाहे जैसे आयी
जिनकी मर्ज़ी से आई
जिनकी मर्ज़ी की आई
सबसे ज़्यादा वो खुश हैं,
जिन्होंने कीमत नही चुकाई

याद रहे,
कितनी ही आज़ादियों के मानचित्रों पर
एक विभाजन चुभता है
जब सब ज़ोर से हंसते है
कहीं, कभी
कोई सीना दुखता है

रविवार, 4 अगस्त 2019

देखना

वान गॉग, wikipedia commons












एक सुन्दर तस्वीर को कैसे देखते हो तुम?

बहुत सारे रंग
थोड़ा सा समंदर
बहुत सारी रेत

तुम देखते हो 
तस्वीर और तुम्हारे बीच
एक छोटी सी दूरी
और ढेर सारा समय

जो तस्वीर में है
वो तुम नही हो
तुम उसका शोक हो

तुम एक दिन सारा शोक समेट कर
बहाने जाओगे नदी के पास
और कभी वापस नही लौटोगे

जहाँ तुम हो
वहाँ से उसे धन्यवाद दो
जो कभी वापस नही लौटेगा

तुम्हारी कृतज्ञता
उसे हिम्मत देगी
जिसे करनी है अभी
एक लम्बी यात्रा.


शनिवार, 3 अगस्त 2019

दुख की सूचना












भौतिकी का एक स्थापित सत्य है
कि प्रकाश की गति अद्वितीय है
सूर्य से धरती की दूरी नाप लेता है प्रकाश मिनटों में
और बादल गरजने की ध्वनि से भी पहले
दिख जाती है हमे कड़कती हुई बिजली

फिर भी
ऐसा कितना कुछ है
जो है हमारी दुनिया मे
लेकिन अभी नज़र से दूर है

जैसे कई तारे
हमारी ही दुनिया के
जिनका प्रकाश
नही पहुंचा है हमारी पृथ्वी तक

एक रात अचानक आ जुड़ेगा
अँधेरे होते आसमान में 
एक नया 
अप्रत्याशित 
सितारा।

आकाश देखने पर ये याद आता है
कि ऐसे कितने ही दुःख है
जो हैं
लेकिन उनकी सूचना नही पहुंची है हम तक

हम तारों का जश्न मनाये
या अँधेरे का शोक
इससे रेशा भर भी फर्क नही पड़ता उस दूरी पर
जो एक दुख को हम तक पहुँचने में तय करनी है।

बुधवार, 24 जुलाई 2019

पुरानी चिट्ठियाँ


कोई चिट्ठी तुमसे कभी यह नहीं पूछती, तुम यूं बंद कैसे हो गए आखिर? हर चिट्ठी उम्मीद के लिफ़ाफ़े मे बंद हैं, और लिफ़ाफ़ा फटा हुआ है.
________________________ गगन गिल




मुझे मिली सारी चिट्ठियों की स्याही
चिट्ठीयों के काग़ज़ में ही खो गयी.

अलमारी में बंद
लिफाफे में संजोयी
डायरी में सहेजी चिट्ठियों तक
चुपचाप पहुंच गई समय की नमी.

समय के साथ दुनिया ऐसे ही बदलेगी,
जैसे बदल चुका है
नीला आसमानी अंतर्देशीय 
लहरों से भरे एक समुद्र में.

इतने रंगो में मै कैसे पहचानूँ कुछ भी?

उम्मीदों की तरफ बढ़ते हाथ
उन शिकायतों को छेड़ देते
जो कभी की ही नही गयी
कुछ छू भर लेने की अकुलाहट तले
टूट जाता कोई अनदेखा स्वप्न.

मैं अखबार में एक इश्तेहार देकर
करना चाहता हूँ 
मृत स्मृतियों की शिनाख्त
लेकिन उनके पहचान लिए जाने के ख्याल से डरता भी हूँ.

अब भी बचे है 
जाते हुए शब्दों के पदचिन्ह. 
स्मृति की टॉर्च लेकर
लौटता हूँ मै उनपर, अनेकोबार 
और किसी अनजानी चीज़ से ठोकर खा कर लौट आता हूँ.

लौटना एक यात्रा का पूरा होना हो सकता है
बशर्ते जाने और लौटकर आने वाले में
केवल एक चोट भर का अंतर न हो. 



शनिवार, 8 जून 2019

एक प्रेम और पांच बातें

















१.

प्रेम में आसान है धीरे-धीरे मध्ययुगीन हो जाना
मुश्किल है उसमें
मध्य को उद्घाटित करना
और देना संबंधों को एक कालोत्तर आयाम.

मसलन,
हम प्रेम में जब मध्ययुगीन होने लगते है 
तब प्रेम अचानक उत्तराधुनिक हो जाता.

मध्य की संकल्पना 
इतिहास की एक त्रासद कल्पना है 
उत्तराधुनिकता 
एक राजा का अनोखा-अलबेला लिबास

इतिहास की भाषा को टटोलना
एक जोखिम भरा उपक्रम है 
जो चीखेगा कि राजा नग्न है 
उसे कहानियों में बच्चे की उपाधि दी जायेगी 

इसी तरह दूसरी रेखाओ को मिटा कर
लम्बी की जायेगी हमारे सयानेपन की रेखा.


२.

एक छोटा सा तिनका 
डूबते को सहारा दे तो सकता है 
लेकिन अक्सर डूबता आदमी 
तिनके पे भरोसा नही करता

डूबने की शुरुआत 
हमेशा अविश्वास से होती है.

जिसने भी कभी जीवन में घोसले देखे है
वे तिनके को हमेशा एक अलग नज़र से देखेंगे
हमने अपने समय मे
घोसलों को तिनका-तिनका होते देखा.

स्मृति के भंवर में
कविता एक तिनके की तरह है.

हम जो देखते है और जो सच है
इस अंतरसंबंध में असीम संभावनाएं है.


३.

शंका और सम्भावना का सिक्का हवा में उछालकर 
सिक्के के वापस ज़मीन पर गिरने की प्रतीक्षा में 
एक ओढ़ी हुयी नादानी है

तथ्य ही नही
कई बार हमारी नफरत के नियम भी
पुनर्विचार मांगते है.
आँखों पर लगे चश्मे
हमेशा दृष्टि को तीक्ष्ण करे, ये बिलकुल ज़रूरी नही.
 
हम विरोधाभासो को साधते 
गर्वोन्मत्त लोग है 
जो मानते है 
कि सब पीछे छोड़ कर आगे बढ़ ही जायेंगे
इतिहास, स्मृति, काल, मृत्यु
इनसब की गति की सीमा से
ये भ्रम कितना निरपेक्ष है. 

4.

जो सुर-सार सापेक्ष है
वो संगीत है
जो निरपेक्ष
वही शोर.

जीवन रोज़मर्रा की गति में कभी कभी
ऐसे सत्य को अतिक्रमित भी करता है.

हर अतिक्रमण एक नई चौहद्दी बनाना चाहता है
जिसके पार्श्व में जाने क्यों सुनाई देती एक विद्रूप हंसी.
जिस सत्य को लांघ कर बनाये जाते नए नियम
उनकी लंबाई वही रुक जाती है.

इसीलिए हमारे समय में प्रेम, विश्वास, ईश्वर
और उनके जैसा सब कुछ
पॉकेट साइज आकार में ही मिला
जिन्हें अचानक ही किसी रोज़ भीड़ में से कोई भी
हमारी जेब काट कर ले गया.

कुछ बुरा होने से पहले ही
हमे ये दुःख सालता रहा
कि क्या है वो इतना कीमती
जिसके चोरी हो जाने की सूचना हमे हमेशा बस थोड़ी सी देर बाद मिलेगी.


५.

मैंने चिट्ठियों को कई बार आखिर से पढ़ना शुरू किया
ये एक क्रूर किस्म की जल्दबाजी थी

सन्देश न शुरुआत में था न आखिर में
वो उन दोनों में बींधा बीच में था कहीं

जैसे भरे पूरे सम्बन्ध में प्रेम होता है.

हम आखिर से बीच तक कभी नही पहुँच सकते
ये जीवन के गणित का नियम है.

असफल क्रूरताओं को इतिहास ने कभी माफ़ नही किया
सफल क्रूरताएं स्वर्ण अक्षरों में लिखी गयी
ट्रेजेडी परिभाषित करती रही प्रेम को
सफलता ने उसे विकृत कर दिया

हम विरोधाभासों की दुनिया में जीवित है
इसके महिमामंडन में नैतिक पतन है
साधारणीकरण में चेतनाशून्य विवेक
और इससे अनभिज्ञ होने में सुविधाजनक निद्रा.



बुधवार, 17 अप्रैल 2019

बेस्ट ऑफ थ्री



Street Still Life, Martin Vorel













जो याद है उसे भूलना मुश्किल है
जो भूल रहा है उसे बनाये रखना उससे भी कठिन
लिखे हुए को मिटाने और काटे हुए को पढ़ने में बहुत वक़्त ज़ाया होता है
ये सोचकर सारे कवि रोटी कमाने चले गए.

हमारे वक़्त में न रोटी की कमी है न शब्दो की
फिर भी भूख से मर जाते है लोग
और जीवन से गायब रहती कविता.

किसी रानी का स्वर कहीं पार्श्व से गूंजता
ये भूखे लोग रोटी की जगह शब्द क्यो नही खा लेते

कोई क्रांतिकारी भूख मिटा देने वाली
गिलोटिन देख कर मुस्कुरा रहा है.

अपनी दुनिया को मैं हर बार एक विस्मय के साथ देखता हूँ
इतिहास देखता है वापस मुझे
मेरी ही नज़रों से

प्रेम से बिंधे एक युगल की तरह
हम दोनों ही निराश भी होते है अक्सर एक दुसरे से

हम हताश होते है उस दोहराव से
जो पहली बार त्रासदी और फिर उसके बाद
हर बार एक स्वांग लगा.

प्रेम
इतिहास,
कविता,
बेस्ट ऑफ थ्री में बच जाएंगे में हम शायद,
इस बचकानी उम्मीद की आंखों में मोतियाबिंद है.

प्रेम, इतिहास, कविता से
अगर तापें जाएंगे केवल अलाव
तो उम्मीदे गर्म भर रहेंगी
राख हो जाने तक.

समझ के साथ जीने के लिए हमे लपट नही
थोड़ी सी रोशमी चाहिए, बस.


शनिवार, 13 अप्रैल 2019

उन्माद

डूम कलेक्टिव, flickr












सफल होने के उन्माद के साथ शुरू होते है मेरे भी दिन
सफलताएँ मिलती है, असफलताएँ भी मिलती है
उन्माद ख़त्म नहीं होता.

तेज़ चलती गाड़ी को अचानक नहीं रोकते
वो पलट सकती है
इस समझ के साथ मैंने जीवन बहुत धीमा जिया

कहीं भी नहीं पहुंचा समय पर
और दुर्घटनाएँ फिर भी हुयी

ये सब गति का दोष है
यही समझा है अगर तुमने
तो तुमने भी जल्दबाज़ी की है.

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

प्रेम-प्रेम में

इस खेल में भी सांप 
सीढ़ी के तुरंत बाद होता
हम तोड़ सकते थे सारे पुराने नियम
या छोड़ सकते थे खेल भी 
हमने चुना सीढ़ियों को सांपो से डर कर

सांप फुफकार नही रहे
सांप हंस रहे थे

सारी सीढ़ियाँ सांपो ने ही बिछाई थी. 
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इस शतरंज में भी 
हर खेलने वाला बचाना चाहता है
बादशाह को

सबसे बुद्धिमान लोग लग जाते बादशाह बचाने में
बेमौत मारे जाते प्यादे
कुर्बान हो जाते हाथी, घोड़े
मरने-खपने को तैयार रहते वज़ीर और बेगम
बादशाह केवल एक घर आगे पीछे होकर बचा रहता

बादशाह सबसे कमजोर योद्धा था
लेकिन नियम था कि उसे बचाना है.

नियम न तो बदशाह को बुद्धिमान बनाते है
और माफ करना मेरे दोस्त - न बुद्धिमान को बादशाह
नियम ये तय करते है कि बचे रहेंगे बादशाह आखिर तक

बादशाह शह और शिकस्त के परे होते है
बादशाह ही खेल को शतरंज बनाते हैं.

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छुपम-छुपाई कितना भोला सा खेल है
खोजने वाला देता है मौका छिप जाने का
तुम नही जान पाते कि उल्टी गिनती करते हुए
वो कनखियों से सब देख रहा है.

तुम्हे छिप कर रहना है
अंधेरे कमरो में, कोनो में
पेड़ो के पीछे
बिस्तर के नीचे

जो सब कुछ देख रहा है
जो लगभग निडर हो शिकार पे निकला है
जिसका देखना भर कर सकता है तुम्हे खेल से बाहर

जिसके सिवाय इस खेल में न कोई नायक है न खलनायक

इतना शक्तिशाली होकर भी उसे डर है
कोई कहीं से उसे धप्पी न कर दे.


सारा इतिहास डर, ताकत और भय के बीच
सफल धप्पियों का इतिहास है
ये तुमने समझाया मुझे.

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पुनश्च:

जिन्हे सब अच्छे खिलाड़ी कहते थे
वो प्रेम के मामले में बेहद औसत निकले.
जो बनते थे हमेशा कप्तान और दिखाते थे कप्तानी
उनका प्रेम हमेशा गुस्सैल और चोटिल रहा.

मै उनकी सोहबत में भी बहुत रहा
जो अच्छे खिलाड़ी नहीं माने जाते थे
लेकिन जो खेल को खिलते हुए फूल की तरह देखते थे
वो खेल के कामचलाऊ नियम ही जानते थे
और अक्सर उनके टूटने पे मुस्कुरा दिया करते थे.

वो खेल खेलते हुए जी-जान लगा देते
और निराश केवल खेल न पाने पे होते.
उन्हें भी हो गया प्रेम 
उनको ही तो हुआ प्रेम.

वो आज भी हैं
खुशी, उदासी, सफलता, असफलता के अपने हिस्सो पे
हाथो को कस से थामे हुए.
तब भी लगता था, पर अब कहता भी हूँ 
कि क्या शानदार आदमी है!

हम सारे खेल खेलते हुए 
सीख रहे होतें है केवल प्रेम करना 

आखिर में
हम जैसा खेलना जानते है 
वैसा ही प्रेम करना भी.

सोमवार, 18 मार्च 2019

हाथ - 1

गुस्ताव क्लिम् की मशहूर पेंटिंग 












प्रेम को छिटक जाने देना
गैर-इरादतन हत्या करने जैसा है
जिसमे जुर्म वही रहता है
बस सज़ा कम मिलती है.

हर हथियार की धार को कभी गौर से देखना
वो इतनी पैनी होती है
कि नही होती उसपर किसी माफी
या पछतावे के एक क्षण जितनी
महीन-सी भी जगह

तमाम कातिल अपना जुर्म
पूरी तरह तभी समझ पाते है
जब एक रोज़
मूठ की जगह उनका सामना चाकू की धार से होता है.

हमारे हाथो की सबसे गहरी लकीरें
चाकू को उल्टा पकड़ने से बने निशान है.


मिरर इमेज

कमरे के एक हिस्से से झांकता दूसरा हिस्सा 













मेरे नए कमरे में दो शीशे हैं -
एक पहले से दीवार पे जड़ा था
दूसरा मेरे साथ आई अलमारी पर आया

दोनों में मेरा अक्स
मुझे अलग-अलग सा दिखता है.

ये रोशनी का फेर भी हो सकता है या मेरी उनसे दूरी का अंतर
या फिर क्या पता बदल जाते हों देखने के कोण

वैसे, मुझे ये लगता है ये दोनों शीशो की उम्र का अंतर है.

तुम नहीं समझोगे
कि कैसा लगता है मुझे ये जानकर
कि ज़रा सी जगह, कोण या उम्र बदलने पर
बदल सकता है मेरा 'मै' होना.

मेरा इंजिनियर दोस्त बस दो मिनट में समझाकर भौतिकी और प्रकाश के नियम
धो देता है सारी 'नाटकीयता'
नियमो के आलोक में  जीवन की व्याख्या
मिनट-दो मिनट ही तो लेती है.

बस, ये सब बताते हुए
उसकी आँखों में वो नमी नहीं दिखती
जो कम से कम मेरे एक अक्स में
अब भी बिलकुल साफ़ दिखाई पड़ती है.

मंगलवार, 5 मार्च 2019

दीवारें - 2

© एडवर्ड मंच, विकिमीडिया कॉमन्स 












मेरी स्मृति के पूरब में
एक प्रेम की दीवार है

उसपर लिखी है आधी कवितायें
और अधूरी कहानियाँ

हर कविता के दक्षिण में होता है
स्मृतियों का मरघट

अधूरी कहानियों के पात्र
प्रेत बनकर
अधूरी कविता के मरघट में घूमते हैं.

मैं प्रेम करता हूँ कि कहानी पूरी हो सके
ताकि वो प्रेत मुक्त हो जाएं.
प्रेम हर बार दगा कर जाता है
कहानी की बजाए कविता बन जाता है.

मुझे करने है अभी कई यत्न
जीने है अभी कई जीवन
सुननी और सुनानी है अभी कई कहानियाँ
देखने है अभी बहुत सारे स्वप्न

बस
मेरी उपस्थिति का सिरहाना हमेशा पूरब में रहे
कि ध्यान रखना कवि -
स्वप्न से भी प्रभावित होती है स्मृति
निद्रा स्वप्न-भंजक भी होती है.
और
दक्षिण में पैर करके नही सोते - ये मृत्यु की दिशा है.

                                             

दीवारें - 1

(c) ज़ेफ़ सफी, flickr












दीवारें कितनी मज़बूत और ताकतवर दिखती है,
दरकने से ऐन पहले तक.
दरकना कितना अदृश्य होता है,
अदृश्य कितना ताकतवर. 

अदृश्य में निवास करते सारे देवता
पुरखे
आत्मा
और प्रेत.
अदृश्य में निवास करता जीवन का ब्लैकहोल.

बस यही से शुरू होती सारी गड्डमड्ड

मैं कुछ बुरा भला कहता अपने पुरखों को
और बींध जाती अपनी ही आत्मा.
मैं सहेजना चाहता जीवन को स्मृति में 
और निगल जाता उसे एक ब्लैकहोल.
मैं दुख में याद करता देवताओं को
उससे और अधिक पोषित हो जाते मेरे प्रेत.
मैं दृश्य में जब भी रखने लगता अपने हथियार
अदृश्य में शुरू हो जाता एक अंतर्द्वंद.

इसमे द्वैत-अद्वैत की बहस नही
आदम को मिला श्राप है.

दृश्य और अदृश्य का द्वंद पूर्वर्निश्चित  है.
धर्म के छात्र हो
तो इसे नियति कह सकते हो.

इतिहास के छात्र हो तो
खोजो कि ये धर्म क्यो अफीम है?

नियाति से लड़ना साहस है,
श्राप से लड़ना तप.

इस सबके के बीच
जिस दीवार पर लिखी है जीवन के मूल्यों की बहस
मैं उसी दीवार की ओट में खड़ा हूँ
आधा आसरा लेकर
आधा सहारा देकर.

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

हरामखोर कवि












दुनिया भर के कवि लिख रहे थे
हमारे प्रेम के बारे में कविताएं
तुम्हारे गुलाबी कान
और सुलझी लट के बारे में

मेरे स्पर्श से होने वाली झुरझुरी
सांस से होने वाले कम्पन
माथे के बीचों-बीच चस्पा किये चुम्बन
और पीठ पे उकेरे हुए द्वीपो पर

मैं ये जानकर आगबबूला हो गया
'हरामखोर कवि'
मैनें दांत पीस कर कहा

मैं पीट ही देता उन कवियों को उस वक़्त
जो मेरे-तुम्हारे जन्म से पहले दिवंगत हो चुके थे

अब, हमारे लगभग बीत जाने के बाद
वो निर्लज्ज हँसते है आकर सपने में मेरे
और मैं बदले और जुनून में लिखता हूँ
अजन्मे लोगो की प्रेम कविताएं.