गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

पेड़. शहर. डायरी....


एक वृक्ष जैसे जैसे बड़ा होता जाता है - जैसे जैसे वह फल देने लायक होने लगता है - जैसे जैसे वह मज़बूत होने लगता है - उसी समय उसका एक हिस्सा मृत हो रहा होता है. उस मृत हिस्से की बनावट, मजबूती, आकार ही बाज़ार में उस वृक्ष की कीमत तय करती है.  वह मृत, कठोर, जीवनहीन हिस्सा उसको फलो का बोझ और तूफानों के थपेड़े सहने की ताकत देता है . वही मृत हिस्सा वृहत्तर अर्थो में जीवन का आधार बन जाता है.

इस प्रकार मृत्यु अनिवार्यतः जीवन का विरोधी विलोम नहीं होती. जीवन की संभावनाए कई बार मृत्यु की गोद में ही जन्म लेती और फलती-फूलती है.

वैसे मृत्यु व्यवहारिकता का इक पर्याय है और खालिस जीवन निरा यूटोपिया.

विशाल वृक्ष जीवन और मृत्यु के सहस्तित्व का...तालमेल का.. अप्रतिम और सुलभ उदाहरण है.
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हर वृक्ष का अपना एकांत होता है. एक एकांत जिसके निर्माण करने की कला और रक्षा करने का सामर्थ्य हर वृक्ष की  जैविक संरचना में पहले से होता है. विशाल वन में भी - जिसमे हज़ारो की संख्या में वृक्ष होते है - हर वृक्ष अपना एकांत खोज लेता ...या शायाद निर्मित कर लेता है. हर पंछी जो उसकी डाल पर बैठता है...हर मुसाफिर जो उसकी छाह में सुस्ताता है...उस एकांत को महसूस करता है. हर हवा का झोंका जो वृक्ष को छूता है और हर फुहार जो उसको सराबोर कर देती है ... उस एकांत को जानते है..उसका सम्मान करते है.


वृक्ष का एकांत उसकी सबसे अनमोल निधि है.

जब तक वृक्ष है एकांत की संभावना जीवित है.

शहरों का फैलना और वृक्षों का कटना जारी है.

वृक्ष एकांत का पर्याय है... शहर अकेलेपन की सर्वोच्च संभावना.
(अकेलापन और एकांत पर्यायवाची नहीं होते)
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 मै कई बार खड़े होकर दुनिया के इक बड़े से नक़्शे के बायीं ओर टंगे हुए छोटे से शीशे में एक बड़े हो रहे वृक्ष को निहारता हूँ. उसके मृत हो रहे हिस्से को देखता हूँ..धड़क रहे हिस्से की कोशिश को सुनता हूँ. जीवन की संभावनाओ को देख पुलकित भी होता हूँ.
लेकिन कुछ आवाज़े आ रही है.. फ़ोन बज रहा है.. मेल, ट्विटर, और फेसबुक नोटिफिकेशंस है. प्रतियोगी परिक्षाए है. बहुत साड़ी अपेक्षाए है.. आशाये है. कुछ तुम हो. कुछ मै हूँ. इक बड़ा शून्य है. कुछ यादो का कोलाज है, कुछ सपनो की टीस है...कुछ इच्छाओ की धुंध.

नज़दीक से जाना. शहर फ़ैल रहा है. सच में.

'नामहीन समुन्द्र के ना जाने/किस तट पर /तुम कहाँ हों ?/मै यातायात से भरे पथ पर/ 
अकेला बैठा हूँ यहाँ'











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