सोमवार, 14 अप्रैल 2014

सुविधा, सच, समझ - तीन छोटी कवितायें












मेरी स्मृति
गहरे में मेरा चयन हैं.

हर चयन
एक सुविधा हैं.

हर सुविधा
सुविधाजनक नही होती.

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शोर और शब्द के मेल से बनी इस भाषा में
निःशब्द होना आया मेरे हिस्से

प्रश्न और उत्तर की शैली में बात करते करते
भूल गए हम
कि हर प्रश्न का दायरा
तय कर देता हैं उत्तर की सीमा

सीमा के भीतर रहने के लिए
एक सच टूटकर
कई टुकड़े झूठ बनता हैं.

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मेरी खिड़की से दिखने वाले नक्षत्र
तुम्हारे तारो से अलग है
यह हमारे आकाश का नही
खिड़कियो का भेद हैं.

अभी हमारा ये समझना बाकी हैं.

8 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारी ये कविताएं ऐसी ही किसी रात में पढ़ी थी. जब नींद गायब थी. इस शहर में लोगों को नींद कैसे आजाती है, मुझे कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है. तीनों कविताएँ बहुत बहुत सुन्दर हैं, 'समझ' से मुझे प्यार हो गया है. भेद सच में आसमान का नहीं, ये समझ आ गया है. बात करते हुए मैं कभी कभी भूल जाया करती हूँ की बातों की जगह प्रश्नों और उत्तरों ने ले लीं है. सच-झूठ, प्रश्न-उत्तर, ये सब बाइनरी हैं और जीवन बाइनरी में एक्सिस्ट नहीं करता।
    तुम बेहतरीन कविताएँ लिखते हो, इतना बेहतरीन जीवन भी जीते होगे। ये उम्मीद है, और दुआ भी. :) किसी ने कहा था, What cannot be said, will be wept. ये सब लिखते हुए कुछ ऐसा लग रहा है,
    'Through me,
    something is lost.
    The meaning is in the waiting.'
    इन वेटिंग है, मिले तो बताना। और, लिखते रहना। :)

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