मै तुम्हे याद करते हुए ही जाता हूँ
और कहीं नही पहुंचता
मै डरते-डरते जाता हूँ
और कहीं नही पहुंचता
डर छूने से फैलता है
मै इसे फैलने से रोकने की
असफल कोशिश करते हुए ही जाऊंगा
कही भी न पहुँचने के लिए.
और कहीं नही पहुंचता
मै डरते-डरते जाता हूँ
और कहीं नही पहुंचता
डर छूने से फैलता है
कही भी न पहुँचने के लिए.
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मै काट दी गयी कविता में भी
ये इतिहास को छूने से लगा रोग है
जो मेरे जीवन से होता हुआ
कविताओं में भी फैल गया है.
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मेरे पास छूने की केवल स्मृति रही
छूने के उस कम्पन में ही
जाना मैंने प्रेम
छूने के स्वाद में ही चखा
मैंने विलगाव.
मै कहना चाहता था कि छूने
से आ जाता है विश्वास
कि छूने से बढ़ता है प्रेम
मै लिखता जाता हूँ कि मुझे छूने से अब लगता है भय
कि छूने से टूट जाते है स्वप्न
कि छूने से फैलती है महामारियाँ
कि छूने से टूट जाते है स्वप्न
कि छूने से फैलती है महामारियाँ
हो कहाँ तुम...नील
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