सोमवार, 18 मार्च 2019

हाथ - 1

गुस्ताव क्लिम् की मशहूर पेंटिंग 












प्रेम को छिटक जाने देना
गैर-इरादतन हत्या करने जैसा है
जिसमे जुर्म वही रहता है
बस सज़ा कम मिलती है.

हर हथियार की धार को कभी गौर से देखना
वो इतनी पैनी होती है
कि नही होती उसपर किसी माफी
या पछतावे के एक क्षण जितनी
महीन-सी भी जगह

तमाम कातिल अपना जुर्म
पूरी तरह तभी समझ पाते है
जब एक रोज़
मूठ की जगह उनका सामना चाकू की धार से होता है.

हमारे हाथो की सबसे गहरी लकीरें
चाकू को उल्टा पकड़ने से बने निशान है.


मिरर इमेज

कमरे के एक हिस्से से झांकता दूसरा हिस्सा 













मेरे नए कमरे में दो शीशे हैं -
एक पहले से दीवार पे जड़ा था
दूसरा मेरे साथ आई अलमारी पर आया

दोनों में मेरा अक्स
मुझे अलग-अलग सा दिखता है.

ये रोशनी का फेर भी हो सकता है या मेरी उनसे दूरी का अंतर
या फिर क्या पता बदल जाते हों देखने के कोण

वैसे, मुझे ये लगता है ये दोनों शीशो की उम्र का अंतर है.

तुम नहीं समझोगे
कि कैसा लगता है मुझे ये जानकर
कि ज़रा सी जगह, कोण या उम्र बदलने पर
बदल सकता है मेरा 'मै' होना.

मेरा इंजिनियर दोस्त बस दो मिनट में समझाकर भौतिकी और प्रकाश के नियम
धो देता है सारी 'नाटकीयता'
नियमो के आलोक में  जीवन की व्याख्या
मिनट-दो मिनट ही तो लेती है.

बस, ये सब बताते हुए
उसकी आँखों में वो नमी नहीं दिखती
जो कम से कम मेरे एक अक्स में
अब भी बिलकुल साफ़ दिखाई पड़ती है.

मंगलवार, 5 मार्च 2019

दीवारें - 2

© एडवर्ड मंच, विकिमीडिया कॉमन्स 












मेरी स्मृति के पूरब में
एक प्रेम की दीवार है

उसपर लिखी है आधी कवितायें
और अधूरी कहानियाँ

हर कविता के दक्षिण में होता है
स्मृतियों का मरघट

अधूरी कहानियों के पात्र
प्रेत बनकर
अधूरी कविता के मरघट में घूमते हैं.

मैं प्रेम करता हूँ कि कहानी पूरी हो सके
ताकि वो प्रेत मुक्त हो जाएं.
प्रेम हर बार दगा कर जाता है
कहानी की बजाए कविता बन जाता है.

मुझे करने है अभी कई यत्न
जीने है अभी कई जीवन
सुननी और सुनानी है अभी कई कहानियाँ
देखने है अभी बहुत सारे स्वप्न

बस
मेरी उपस्थिति का सिरहाना हमेशा पूरब में रहे
कि ध्यान रखना कवि -
स्वप्न से भी प्रभावित होती है स्मृति
निद्रा स्वप्न-भंजक भी होती है.
और
दक्षिण में पैर करके नही सोते - ये मृत्यु की दिशा है.

                                             

दीवारें - 1

(c) ज़ेफ़ सफी, flickr












दीवारें कितनी मज़बूत और ताकतवर दिखती है,
दरकने से ऐन पहले तक.
दरकना कितना अदृश्य होता है,
अदृश्य कितना ताकतवर. 

अदृश्य में निवास करते सारे देवता
पुरखे
आत्मा
और प्रेत.
अदृश्य में निवास करता जीवन का ब्लैकहोल.

बस यही से शुरू होती सारी गड्डमड्ड

मैं कुछ बुरा भला कहता अपने पुरखों को
और बींध जाती अपनी ही आत्मा.
मैं सहेजना चाहता जीवन को स्मृति में 
और निगल जाता उसे एक ब्लैकहोल.
मैं दुख में याद करता देवताओं को
उससे और अधिक पोषित हो जाते मेरे प्रेत.
मैं दृश्य में जब भी रखने लगता अपने हथियार
अदृश्य में शुरू हो जाता एक अंतर्द्वंद.

इसमे द्वैत-अद्वैत की बहस नही
आदम को मिला श्राप है.

दृश्य और अदृश्य का द्वंद पूर्वर्निश्चित  है.
धर्म के छात्र हो
तो इसे नियति कह सकते हो.

इतिहास के छात्र हो तो
खोजो कि ये धर्म क्यो अफीम है?

नियाति से लड़ना साहस है,
श्राप से लड़ना तप.

इस सबके के बीच
जिस दीवार पर लिखी है जीवन के मूल्यों की बहस
मैं उसी दीवार की ओट में खड़ा हूँ
आधा आसरा लेकर
आधा सहारा देकर.