कमरे के एक हिस्से से झांकता दूसरा हिस्सा |
मेरे नए कमरे में दो शीशे हैं -
एक पहले से दीवार पे जड़ा था
दूसरा मेरे साथ आई अलमारी पर आया
दोनों में मेरा अक्स
मुझे अलग-अलग सा दिखता है.
ये रोशनी का फेर भी हो सकता है या मेरी उनसे दूरी का अंतर
या फिर क्या पता बदल जाते हों देखने के कोण
वैसे, मुझे ये लगता है ये दोनों शीशो की उम्र का अंतर है.
तुम नहीं समझोगे
कि कैसा लगता है मुझे ये जानकर
कि ज़रा सी जगह, कोण या उम्र बदलने पर
बदल सकता है मेरा 'मै' होना.
मेरा इंजिनियर दोस्त बस दो मिनट में समझाकर भौतिकी और प्रकाश के नियम
धो देता है सारी 'नाटकीयता'
नियमो के आलोक में जीवन की व्याख्या
मिनट-दो मिनट ही तो लेती है.
बस, ये सब बताते हुए
उसकी आँखों में वो नमी नहीं दिखती
जो कम से कम मेरे एक अक्स में
अब भी बिलकुल साफ़ दिखाई पड़ती है.
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/03/2019 की बुलेटिन, " किस्मत का खेल जो भी हो “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
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