कोई चिट्ठी तुमसे कभी यह नहीं पूछती, तुम यूं बंद कैसे हो गए आखिर? हर चिट्ठी उम्मीद के लिफ़ाफ़े मे बंद हैं, और लिफ़ाफ़ा फटा हुआ है.
मुझे मिली सारी चिट्ठियों की स्याही
चिट्ठीयों के काग़ज़ में ही खो गयी.
अलमारी में बंद
लिफाफे में संजोयी
डायरी में सहेजी चिट्ठियों तक
चुपचाप पहुंच गई समय की नमी.
समय के साथ दुनिया ऐसे ही बदलेगी,
जैसे बदल चुका है
नीला आसमानी अंतर्देशीय
लहरों से भरे एक समुद्र में.
इतने रंगो में मै कैसे पहचानूँ कुछ भी?
उम्मीदों की तरफ बढ़ते हाथ
उन शिकायतों को छेड़ देते
जो कभी की ही नही गयी
कुछ छू भर लेने की अकुलाहट तले
टूट जाता कोई अनदेखा स्वप्न.
मैं अखबार में एक इश्तेहार देकर
करना चाहता हूँ
मृत स्मृतियों की शिनाख्त
लेकिन उनके पहचान लिए जाने के ख्याल से डरता भी हूँ.
अब भी बचे है
जाते हुए शब्दों के पदचिन्ह.
स्मृति की टॉर्च लेकर
लौटता हूँ मै उनपर, अनेकोबार
लौटता हूँ मै उनपर, अनेकोबार
और किसी अनजानी चीज़ से ठोकर खा कर लौट आता हूँ.
लौटना एक यात्रा का पूरा होना हो सकता है
बशर्ते जाने और लौटकर आने वाले में
केवल एक चोट भर का अंतर न हो.
लौटना एक यात्रा का पूरा होना हो सकता है
बशर्ते जाने और लौटकर आने वाले में
केवल एक चोट भर का अंतर न हो.
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