मैं टूटता हूँ, भूलता हूँ
बनता हूँ, याद करता हूँ
बनता हूँ, याद करता हूँ
एक पंक्ति लिखकर मै हिसाब दोहराना चाहता हूँ
एक पंक्ति लिखकर मै सब सुलझाना चाहता हूँ
एक लम्बे समय से अपनी हर कविता में
मै लिख रहा हूँ एक ही पंक्ति बार-बार
मेरा हर शब्द इतना छोटा है
कि काग़ज़ पर कविता नही
एक लकीर नज़र आती है
मैं कविता लिखता
और लकीरो से ढकने लगता जीवन का यथार्थ
कभी मिटाता कोई लकीर
तो जीवन से विदा ले लेती कोई पुरानी कविता
गले में अटकते
दुःस्वप्नों में भटकते
बेमतलब -
घिस चुके शब्द
एक-एक कर छोड़ रहा हूँ
मैं टुकड़े-टुकड़े समझ जोड़ रहा हूँ
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