जीवन-मृत्यु
विष-अमृत
माया-मोक्ष
देह-आत्मा
प्रेम-स्मृतियाँ
निर्णय ने रोक दिया हैं कोई भी मंथन
देवता और असुर खामोश हैं
और लज्जित भी
समंदर के शोर की गूँज
आकाश के मौन से टकराकर
बदलती हैं हर रोज़ नमक में
थोड़ा सा नमक खानें में काम आता हैं
और बहुत सारा दफनाने में.
मेरी आँखें बार बार तुम्हारे ब्लॉग पर आ के रुकती हैं. कुछ पल को इक सराय मिल जाता है, इक ठौर मिल जाता है. कुछ पल को. तुमसे तो मैं कभी मिली भी नहीं शायद। तुम मुझसे मिले होगे शायद। बेहद बेहद बेहद नमी है तुम्हारे लिखे में. बहुत बारिशें होती हैं, जब जब तुम्हे पढ़ती हूँ.
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