पहाड़ो के पास
रहने वाली लड़की
करती थी उसे याद
ये राज़ बस एक छोटे से पौधे को पता था.
लड़का नदी के लिए
लिखता था सन्देश
और भेज दिया करता था लड़की को
चिट्ठी ले जाने वाला बादल सब जानता था.
ये दिन थे
नदियों के, पहाड़ो के,
कविताओं के, सम्भावनाओं के
जिनसे होकर बह रहा था जीवन.
फिर,
-इक दिन
सभ्यता का आगमन हुआ
पैगम्बरों और पैगामो
न्यायाधीशों और नियमो
और शहरों के साथ
समाज और संबंधो के खांचो से लदा
और जल्दी ही ऐलान हुआ
कि पर्वतो को तोड़कर जमा किया जाए सामान
और नदी पर बनाए जाए असंख्य बांध -
-बाढ़ के खतरों को टालने के लिए
-बहाव के सही उपयोग के लिए |
बस
फिर इसके बाद कुछ भी नहीं हुआ दुनिया में
.....
लड़का-लड़की और प्रेम निर्वासित हो गए, इतिहास में,
खापो और पंचायतो के फरमानों से बचते
दुनिया का आखिरी कोना तक छान लेने के बाद.
शहर फैलता रहा
अतिक्रमित करता कस्बो-गाँवों को
मन के सुदूर कोनो तक.
नदियाँ सूखती रहीं
कलुषित-प्रदूषित हो
नाला हो जाने तक.
पर्वत टूटते रहे
अट्टालिकाओ के फर्शो में
बिछ जाने को.
कवितायें, यादें और चिट्ठियाँ फ्रायडियन थाती हो गयी.
लगभग सबकुछ इसी घोषणा के साथ समाप्त होता हैं
पर कविता की साँसों में कुछ सूचनाएं अटकी हैं.... ...
कि
इक छोटे से पौधे की कलियों ने
खिलने से इनकार कर दिया
कि
एक बूढ़ा बादल किसी रेगिस्तान में जाकर
बरस गया
कि
कभी अचानक ही किसी रोज़
केदारनाथ तीर्थ
कब्रगाह में बदल जाता हैं
कि
हर बरस कोसी नदी
बाँध का सीना चीर
आवारा हो जाती हैं
और सुना है
सुदूर अंडमान के किसी पर्वत की छाती में
आज भी धधक रहा है
एक गुप्त ज्वालामुखी |
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