बड़ी-बड़ी होती हैं कहानियाँ, कवितायें
जीवनी और आत्मकथाएं
जीवन छोटा-छोटा ही होता हैं
छुपा, ठहरा, चलता, अलसाता,
सुस्ताता
उन बड़ी-बड़ी इकाईओं की धुप-छाँव में
मिल जाता हैं
कभी
यूं ही
अचानक
कुछ पलों में
कुछ पलों को
जैसे
उस रोज़ मिली थी
गुलज़ार की
सितारे गिनते-गिनते
ज़ख़्मी हुई उँगलियों को
सितारे गिनते-गिनते
ज़ख़्मी हुई उँगलियों को
अरसे बाद पहने एक पुराने कोट की
नीचे वाली बायीं जेब में
छिप कर बैठी
इलाईची
'तुम शायर ना होते अगर//तो बड़े झूठे आदमी होते' |
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