रविवार, 27 अक्तूबर 2013

जीवन- एक कोलाज



बड़ी-बड़ी होती हैं कहानियाँ, कवितायें 
जीवनी और आत्मकथाएं 

जीवन छोटा-छोटा ही होता हैं 
छुपा, ठहरा, चलता, अलसाता, 
सुस्ताता 
उन बड़ी-बड़ी इकाईओं की धुप-छाँव में 
मिल जाता हैं 
कभी 
यूं ही 
अचानक 
कुछ पलों में 
कुछ पलों को 

जैसे 

उस रोज़ मिली थी 
गुलज़ार की
सितारे गिनते-गिनते
ज़ख़्मी हुई उँगलियों को  
अरसे बाद पहने एक पुराने कोट की 
नीचे वाली बायीं जेब में 
छिप कर बैठी 
इलाईची 
'तुम शायर ना होते अगर//तो बड़े झूठे आदमी होते'







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